कश्मकश
कश्मकश
थोड़ी दुनियादारी खुद से
खुद को समझाई जाए
कुछ शाम भी खुद के
संग बिताई जाए
सब कुछ तो अफसाना है
दिल को खुद से ही बह लाना है
अब दिन दोपहर शाम रात
बस गम का आना जाना है
ये नींद ख्वाब सब बातें हैं
बस जागी सोई राते हैं
दरिया के आन की बातें हो
सागर के शान की बातें हो
यह अश्क बहुत पुराने हैं
कुछ गुज़रे है कुछ आने है
कुछ बचा नहीं है रोने को
सब भूल गया हूं खोने को
मुफ्त कहां कुछ मिलता है
राहों से शज़र कुछ कटता है
अब आसमान में जाते हैं
अब सारे गुल खिलाते हैं
अब जीस्त मुकम्मल करते हैं
अपने सफर सुहाने करते हैं।