तू नहीं जानती
तू नहीं जानती
तू नहीं जानती
तेरे लबों से बहती हुई ये हँसी,
कितने पत्थर दिल की
आहटों को रौशन कर रहीं है,
तू नहीं जानती
तेरे ज़ुल्फों से
महकती हुई खुशबुएँ,
इस जहाँ के परिंदों को
मदहोश कर रही है।
तुझे कैसे बताये
तेरे गज़ाल सी
आँखों में मेरे कितने कई
एक मेहरम हश्र-ए-हाल
हुए जा रहे हैं।
तेरे बदन की वाबस्तगी
के लिए कितने शहरयार
वहसत की क़ीमत
अदा कर रहे हैं।
तू नहीं जानती
हम तुझे खुद पर
तारी करने की अबस
कशिश में मरे जा रहे हैं।
तुझे क्या इल्म
तेरे तबस्सुम की सनाख्तगी की
कोशिश में इस जहाँ से
अज़ीयत झेल रहे हैं।
तुझे कौन बताये
तेरी आँखे नहीं ये
देवताओं की पनाह-गाहे है,
जिनमें वख़्त जैसे ज़हर
का दरियाब है।
तेरी पलकें मानों
ज़न्नत के पाकीज़ा
दरख़्तों को देखकर
तरसी गई हो।
हमारे ज़िस्म पर से
तेरी परछाई गुज़र जाए,
तो मुमक़िन है कि
हम मौत जैसे ख़ौफ़ से
आज़ाद हो जाये।