मन पंछी
मन पंछी
मन चाहता है खुले आसमान में उड़ता जाऊं,
पंछियों संग आसमान में मै भी पंख फैलाऊँ।।
नफरत की दुनिया से खुद को आजाद करूँ,
इस पंछी मन को सरहद पार आबाद करूँ।।
कोयल की स्वर में मधुर गीत कोई गाऊं मैं ,
कोमल लहजों में फिर अपना ख्वाब सुनाऊँ मैं।।
अपने ख्वाबों को जीने का सपना लिया जो मन में,
दूर-दूर तक पंख पसारे उड़ता जाऊं नील गगन में।।
कर्म मर्म के भेद भुलाकर कुछ दिन जीना चाहे मन ,
उन्मुक्त गगन के पंछी संग कहीं खो जाना चाहे मन।।