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Goldi Mishra

Tragedy Inspirational

4  

Goldi Mishra

Tragedy Inspirational

गांव

गांव

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आज शहर के होकर गांव हम भूल गए,

इस देश की नींव किसान को भूल गए,

ना जाने वो मेले वो खेल कहा खो गए,

शहर के शोर में गाव के गीत खो गए,


वो पेड़ों की ठंडी छाव शहर में मिलती नहीं,

वो सावन कि धूम अब मिलती नहीं,

वो त्यौहार की रौनक अब शहर में मिलती नहीं,

क्यों वो दादी नानी की कहानी अब कोई सुनता नहीं,


कच्ची सड़को से कोई पक्के इरादों के साथ शहर आया,

अपना गांव अपनी पहचान कही खो आया,

कोई किसी को झूठी आस में सिर्फ इंतजार दे आया,

वो बैठी रही उसकी राह में पर वो परदेसी ना आया,


शहर की चकाचौंध में वो भोला मुसाफिर खो जाएगा,

हर ख्वाब उसका टूट जाएगा,

उसकी बोल चाल उन शहर के लोगो से मिलती नहीं,

क्यों यहां उसकी भावनाओं की कद्र नहीं,


वो गांव का मुसाफिर शहर को निकला,

दो पैसे कमाने को घर बार छोड़ वो निकला,

सभ्यताओं को उसने बदलते देखा है,

दिल को दुखाने वाले भेद भाव को उसने देखा है,


माना गांव में लोगों के पक्के घर नहीं,

पर यहां लोगों के पत्थर से दिल नहीं,

सरकार को गांव सिर्फ चुनाव के वक़्त नज़र आते है,

यहां के हालात इसी कारण नहीं सवर पाते है,


एक ही देश में ये कैसे हालात है,

क्यों अन्न दाता के बिखरे से हालात है,

क्यों हम गांव भूल गाए,

क्यों गांव में देखे गए सपने धूल हो गए।


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