फ़ितरत
फ़ितरत
तेरी सूरत में मैंने रब को माना था
तेरी सीरत में मेरे प्यार को ना पाना था
तेरे दिल में मेरा ना कोई ठिकाना था
मुझसे दिल लगाना तो सिर्फ तेरा एक बहाना था
ये सब करना तो तेरी फ़ितरत का एक नज़राना था
तेरा नजरें मुझसे मिलाना भी
क्या मेरे जख्मों पर मरहम लगाना था
सोचा था तेरी नज़रों से ही मैंने
अपनी उस अनजानी मंज़िल को पाना था
पर तेरी फ़ितरत में मुझको गुम कर जाना था
तेरी रूह मैंने अपना इश्क़ फरमाना था
तुझसे किया अपना हर वादा निभाना था
मेरी हर कविता के तुम अफ़रोज़ हो
ना जाने ऐसा क्या अफ़सोस ए आलम हमसे हो गया
कि तेरी फ़ितरत से मेरा गुनाह ए इश्क़ मेरा हो गया
तेरे ज़हर ए जुदाई ने वो सब गम मुझको दिए
मेरे ख़्वाबों में ये सब हमको बेदम किये
मैंने अपने उल्फ़त ए बादल में वो रंग किये
जिनसे तेरे चेहरे में भी अपना चेहरा पा लिया
पर तेरी फ़ितरत ने मुझको क्यों
ये दहलीज़ ए दोज़ख दिया
तेरी दीवानगी का मुझ पर ऐसा नूर है
ये बन्दा तो अपने इश्क़ ए तकलीफ़ में मशहूर है
पा लेंगे वो मुक़ाम ए फ़लसफ़ा तेरी मोहब्बत में
एक दिन कवियों की महफ़िल में मेरा भी नाम होगा
ये सब तेरी फ़ितरत का कमाल ही तो है
जिसमें तेरा ही चर्चा आम होगा।