होली
होली
सुना है मैंने तूने की आज एक ऐसी तैयारी है
बोला है दुनिया को आज उसको रंगने की बारी है
ऐसा रंग बनाया है मैंने जो सब रंगों पर भारी है
अरे पगली तेरी पिचकारी में वो रंग कहाँ
जो तुझसे की मेरी प्रीती पर भारी हो
तेरी होली में वो सब रंग कहाँ
जो बरसाने की गोरी राधा ने मोहन पर डाला हो
आओ प्रेम से ये उत्सव मनाये
सब आज की होली में लाल - पीले - हरे हो जाये
जो रंग उतारे से उतर है जाये
वो रंग हो सकते है पर मुझको ना भाये
मैं तो वो रंग चाहूँ जो मोहन को मुझ में रमाये
एक बार रंग दे मुझको इस रंग में
फिर ओर रंगों की मुझे बिल्कुल जरूरत ना
ऐसा रंग है कृष्ण सावंरिये का
जो कभी फीका ना पड़ता चाहे
धो लेना इसको लाख जन्म अब ये ना कभी जाये
हर होली पर ये भारी पड़ता ये है कान्हा के नाम का चर्चा।