एक टैक्स ऐसा भी
एक टैक्स ऐसा भी


थी वो महिला या
दुर्गा का अवतार
खुद का संहार कर
किया जाति का उद्धार।
केरल की एक क्रूर प्रथा
दर्ज हो गई इतिहास में।
प्रारम्भ हुई 19वी सदी में
केरल के त्रावणकोर में,
ब्रेस्ट टैक्स का था, कानून
सिर्फ निचली जाति को था फरमान।
किया गया अपमानित महिलाओं को,
सम्मान का हक छीन लिया।
नहीं इजाजत दी स्तन ढंकने की
और टैक्स लगा दिया।
लिया अगर स्तन को ढ़क सार्वजनिक
दिया टैक्स स्तन के आकार का।
थी ये चाल पुरानी
न उबरे निचली जाति,
कर्ज के गलियारे से।
डूबे रहें ये प्राणी,
कोई काम न करें होशियारी से।
छीन लिया था अधिकार
महिलाओं के आभूषण व
पुरूषों की मूँछों का
लगा दिया सब में टैक्स
इस सभ्य समाज की नींव ने।
खड़ी हुई एक नारी
रणचंडी का अवतार लिए।
किये प्राण न्यौछावर पर
प्रथा का विरोध किया।
नाम था उसका नंगेली
लिया उसने कदम क्रान्तिकारी
ढकूँगी स्तन सार्वजनिक मैं
पर कर भी ना दूंगी मैं।
नंगेली ने प्रण निभाया।
खबर फैली ये चहुँओर
आया टैक्स अधिकारी मंडली के साथ में
उठाया क्रांतिकारी कदम नंगेली ने
रखें स्तन काट कदली के पात में।
थर -थर कांपा अधिकारी भागा
पीठ पछाड़
हुआ रक्त स्राव व पीड़ा
नंगेली ने दम वही पर तोड़ा
हुआ स्वाहा नंगेली का स्वामी
चिरकुंदन भी उस धधकती ज्वाला में।
रहा होगा पहला सतीपुरूष
केरल के इतिहास में
खबर बन गई दावानल
हुआ विद्रोह कुछ ऐसा
ख़त्मा हुआ विवश्ता में
टैक्स के रिवाजों का।
त्यागें प्राण जहाँ चिरकंदन ने
चेरथाला हैं वह स्थान।
दिया सम्मान उस भूमि को
दिया नाम हैं मुलाचीपराम्बु
पुकारा जाए इसे अब
मनोरम कावाला भी।
पर रहेंगी इतिहास में ये कहानी
एक टैक्स ऐसा भी
जिसके लिए सति हुआ पुरूष,
बलिदान हुई नारी।