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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

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संजय असवाल "नूतन"

Tragedy

एक सवाल..?

एक सवाल..?

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हर तरफ एक शोर है 

कोई कुचल गया देह उसका 

अपनी देह की 

वासना को तृप्त करने।

हर कोई पूछता है

एक सवाल...? 

उससे ही उस शोषण का।

कोई खामोश है सर झुकाए 

कोई रो रहा है

किसी के नीर 

बह बह कर चीखते हैं

उस वक्त को कोसते हैं

जब वो स्त्री बन पैदा हुई।

कोई समाज की गलतियां बताता 

कोई उसकी ओर उंगलियां उठाता

कोई नैतिकता का पाठ पढ़ाता 

पर हर कोई खामोश है,

होंठ सबने सिले हुए हैं।

कोई खुद आगे बढ़ 

खुद प्रयास नहीं करता

रोकते हैं

टोकते हैं उन्हें 

सदियों से बनी 

रूढ़ीवादी कुरीतियां।

वक्त भी इसी का नाम है

शोषित पिसता है

शौषण और अत्याचार 

संग चलता है

उस सदी से इस महायुग तक अनवरत,

कुलचलता है सम्पूर्ण 

मानव के अस्तित्व को 

झकझोरता है चेतना को 

जो बुझ गई 

हर बार के 

उस पर हुए प्रहार से।

उठता है हर बार

रटा रटाया एक सवाल...!

कि गलती किसकी..?

और जवाब भी..

कि इस देह की है

चार दिवारी की सीमाओं को 

लांघने की है।


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