एक सैनिक का खत
एक सैनिक का खत
आज है हाथ में मेरे तेरा ख़त है,
दिल खुशी से नाच रहा है
दिल की धड़कन खुद सुन रही हूं
मन मयूर बन नाच रहा है
सकुचाते से खोला उस लिफाफे को मैंने
नम आंखों से ख़त को मैं पढ़ने लगी।
मां पिताजी को चरण स्पर्श किए थे
बच्चों को दिया दुलार करती था।
हर अक्षर में कितना प्यार था खत में,
चेहरा पिया तेरा दिख रहा था।
लिखे तेरे प्यार को मैं पढ़ रही थी
खत लगाकर दिल से महसूस तुझे कर रही थी
मेरी जीवन संगिनी हो तुम,
कर्जदार हूं तेरा।
मैं हूं यहां सरहद पर देश का फर्ज निभाता हूं ,
घर की हर काम में तू फ़र्ज़ मेरा निभाती।
फर्ज है हम दोनों का ही देश और घर के लिए
निभाते हैं दोनों ही अपनी अपनी जगह पर
याद बहुत आती है सबकी,
बच्चों की शक्ल भूल गया हूं।
है वादा मेरा जल्द ही आऊंगा,
पर तेरा कर्ज कैसे निभाऊंगा
तेरे दर्द से वाकिफ हूं मैं
तेरे अकेले पन का साथी हूं मैं
पर पहले यह देश है मेरा
फिर कोई और रिश्ता है मेरा
यह जन्म है देश के नाम
अगले जन्म तेरा कर्ज उतारूंगा
यह था उनका आखिरी खत ,
लिखकर जो भेजा था सजन ने
वादा था आने का जल्दी
तिरंगा ओढ़ कर आए वो
चारों तरफ थे साथी उनके
आंखों में था पानी
देने विदाई साथी को अपने
पत्थर दिल बनकर आए वो
क्षत विक्षत शरीर था तेरा
पर मुख पर था एक गर्व।
है आंसू आंखों में,
छोड़ दिया अधूरापन जीवन में,
पर वो आखिरी खत बनकर
साया है तेरा, मेरे जीवन में।