मुसाफ़िर
मुसाफ़िर
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मुसाफ़िर हूँ मैं, राहों में खो गए,
रिश्तों की अहमियत से सब अनजान हो गए,,
रूह पर कर्ज था कुछ लम्हों का,
पर वक़्त के साथ हर एहसास खो गये,,
ख़ुदी का गुरूर था, जो सब मिट गया,
अब बस यादों का कारवां रह गया जो धीरे धीरे सिमट गया,,
