एक झलक
एक झलक
सुबह भी जल्दी होती है
और रात भी जल्दी होती है,
गाँव में तो साहब
वक्त की पाबंदी होती है।
गोधूलि की बेला में
चौपालों में बातें होती है,
बच्चों के खेलों की तो
बात निराली होती है।
पनघट में पनिहारिन की
गागर छलकती जाती है,
शाम ढले चूल्हों से
रोटी की ख़ुशबू आती है।
मौसम की पहली बारिश में
सोंधी सी मिट्टी महकती है,
खेतों की हरियाली से
एक नई किरण सी दिखती है।
विवाह की रस्मों में
कई दिन गुजर जाते हैं,
फेरों के गीतों से तो
रात निकल जाती है।
लाड़-प्यार भी दिखता है
डाँट-मार भी पड़ती है,
गाँव जैसी और कही
तहजीब नजर नहीं आती है।
दुल्हन का लम्बा घूँघट और
हाथों में खनकती चूड़ियाँ हैं,
ऐसी खूबसूरती रिश्तों की
कहीं और नजर नहीं आती है।
संस्कृति परम्पराओ का संगम
गाँव में ही होता है,
यूँ ही नहीं कहते हैं लोग
गाँव में स्वर्ग बसता है।