यूं बर्फ़ सा पिघलना
यूं बर्फ़ सा पिघलना
चांद सा चमकना
और
रेत सा फिसलना
होता है क्या मुमकिन ?
यूं बर्फ़ सा पिघलना।
हर शाम सा यूं ढलना
और
परिजात सा महकना
होता है क्या मुमकिन ?
यूं बूंदों में सिमट जाना।
हर रात का सम्हलना
और
पहरो में गुज़र जाना
होता है क्या मुमकिन ?
यूं जमीं सा ठहर जाना ।
अफसानों को सुलझाना
और
दर्दोगम से निकल पाना
होता है क्या मुमकिन ?
यूं उल्फत ए जिंदगी समझ पाना।
चांद सा चमकना
और
रेत सा फिसलना
होता है क्या मुमकिन ?
यूं बर्फ़ सा पिघलना।