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Neha Pandey

Abstract

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Neha Pandey

Abstract

यूं बर्फ़ सा पिघलना

यूं बर्फ़ सा पिघलना

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चांद सा चमकना

और

रेत सा फिसलना

होता है क्या मुमकिन ?

यूं बर्फ़ सा पिघलना।


हर शाम सा यूं ढलना

और

परिजात सा महकना

होता है क्या मुमकिन ?

यूं बूंदों में सिमट जाना।


हर रात का सम्हलना

और

पहरो में गुज़र जाना

होता है क्या मुमकिन ?

यूं जमीं सा ठहर जाना ।


अफसानों को सुलझाना 

और

दर्दोगम से निकल पाना

होता है क्या मुमकिन ?

यूं उल्फत ए जिंदगी समझ पाना।


चांद सा चमकना

और

रेत सा फिसलना

होता है क्या मुमकिन ?

यूं बर्फ़ सा पिघलना। 


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