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Neha Pandey

Abstract Inspirational

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Neha Pandey

Abstract Inspirational

जिदंगी के दायरे

जिदंगी के दायरे

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जिदंगी एक दायरे में

सिमट कर रह गई है ,

और दायरा भी ऐसा है

जिसकी लकीरें नज़र नहीं आती

सिर्फ़ महसूस की जाती हैं ।


झूठे वादों - दिलाशो की

एक मोटी दीवार ऐसी बनी है 

जो अब गिर नहीं सकती ,

दिखावे की चाह में

नकाब हर चेहरे पर चढ़ा है

अब तो असलियत की पहचान 

किसी हाल में हो नहीं सकती ।


ये दुनियां भ्रम सी लगती है 

सपने , उम्मीदें सबकुछ 

रस्सियों में जकड़े से लगते हैं ,

तोड़ने की हर कोशिश 

नाकामयाबी की तरफ़ खींचती है 

एक पारभासी परदा 

आंखों के सामने पड़ा है

जिसके पार दूर - दूर तक 

सिर्फ़ धुंधला ही नज़र आता है ।


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