नाराज़गी कैसी तुमसे
नाराज़गी कैसी तुमसे
नाराजगी कैसी तुमसे
मेरा हक नहीं तुम पर।
किताब भरी है
किस्सों से तुम्हारी ,
मैं पढ़ सकूं उसे
ऐसी लिखावट नहीं उस पर ,
नाराज़गी कैसी तुमसे
मेरा हक नहीं तुम पर।
शिकायते करनी है तो
चांद से कर लूं ,
मेरी बातों को
ख़ामोश रहकर सुनता है ,
तुमसे जो बयां कि तो
कहीं पलटवार न हो मुझ पर,
नाराज़गी कैसी तुमसे
मेरा हक नहीं तुम पर।