एक बूढ़े की प्रार्थना
एक बूढ़े की प्रार्थना
हे परमपिता परमेश्वर
हे जगत पिता जगदीश्वर
कुछ भूल हो गई क्या मुझसे?
मेरे कागज खो गए क्या तुझसे?
अब मैं 99 बरस का हुआ हूं
एक अजूबा सा बना हुआ हूं।
अंग तो कोई अब चलता नहीं।
बात मेरी कोई सुनता नहीं।
पास में कोई अब आता नहीं।
मैं भी कहीं अब जाता नहीं।
एक कमरे में मेरा बसेरा है।
पास कोई ना अब मेरा है।
एक अटेंडेंट ड्यूटी निभाता है।
बस अब उसी से मेरा नाता है।
वो रूबाब , वह धन, दौलत चूर हुए।
रूप भी तो अब ना रहा
जिनके कारण थे हम मशहूर हुए।
एक नशा सा छाया रहता था
मैंने जो चाहा वही करता था।
खुद के सिवा किसी को इंसान ना मैंने जाना।
आज का दिन है उसी का परिणाम मैंने माना।
नए-नए इत्र सेंटों से मैं सराबोर रहा।
आज अपने बुढ़ापे की दुर्गंध को
मैं बैठ अकेला सूंघ रहा।
प्रभु माना मैंने पाप किए, सैकड़ों अपराध किए।
प्रभु अब तो मुझको माफ तू कर।
हुए हैं जैसे अंग मेरे सारे खराब।
वैसे ही मेरा दिमाग भी खराब तू कर।
सुनता भी कम है, दिखता भी कम है,
कर तो मैं अब कुछ सकता ही नहीं।
बड़े हुए इस मन और दिमाग की गति को
चाह कर भी मैं रोक सकता ही नहीं।
हर बात मुझे याद आती है।
हर पल मुझको तड़पाती है।
हर कर्म सामने आते हैं,
पर हम बदल उन्हें कहां पाते हैं।
प्रभु इस बार मुझको माफ करो।
मुझे भवसागर से पार करो।
प्रभु अपने चरणों में जगह दे दो।
एक बार बुला लो अपने बालक को अपने पास,
प्रभु मेरे सर पर अपना हाथ धरो।
