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एक और बात

एक और बात

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जो अनकही है ज़माने में अब तक,

आख़िर वृद्धाश्रम क्यों खुले हैं अब तक।

उस माँ की वेदना की चीख़

क्या दफन हो गयी अब तक।


एक और बात

जो अनगढ़ी है समाज में अब तक,

आख़िर ट्रांसजेंडर क्यों अछूते हैं अब तक।


ख़ुदा ने ही बनाया हम सबको

क्यों ये बात समझ न आयी अब तक।


एक और बात

जो अटपटी है देश में अब तक,

आख़िर ज़वान क्यों मरते हैं अब तक।


राजनीति होती है उनके वेतन

और कार्य-प्रणाली पर

क्या उनकी शहादत

बेकार हो गयी अब तक।


एक और बात

जो अनसुलझी है परिवार में अब तक,

आख़िर आरोप क्यों लगते हैं अब तक।



मंदिर-प्रवेश में बाधक मासिक-धर्म

क्यों दकियानूसी सोच

जीतती गयी अब तक।।


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