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sandeeep kajale

Tragedy

4  

sandeeep kajale

Tragedy

एक अकेली छत्री में

एक अकेली छत्री में

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दिल में है कुछ फरियादें

साथ है तुम्हारी ही यादें

लेकर चले अपने गिले मन

बसर करते रहे ये दो तन

एक अकेली छत्री में


अपने आप से मैं रोती रही

क्योंकि बात थी वह अनकही

उधर भीग रहा था उनका भी प्यार

पास थे दोनों, और एक बेनाम दरार

एक अकेली छत्री में


ये ख़ामोशी चाहती थी कुछ जताना रूठे बूंदोंको अब कैसे मनाना

मुश्किलों से भरा ये सफर

धुंदलीसी हो गयी ये डगर

एक अकेली छत्री में


कुछ भी न बचा कहने को

दर्द ही मिला हमें सहने को

उनसे न कर सके ये जिक्र

हमें भी है उनकी कितनी फ़िक्र

एक अकेली छत्री में


बंद लब्ज़, होंठ सिले थे

शायद बहुत दिनों बाद मिले थे

कहा ले आयी हमें ये तनहाई

कैसी ये अंजान जुदाई

एक अकेली छत्री में


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