बंद लब्ज़, ओठ सिले थे शायद बहुत दिनों बाद मिले थे कहा ले आयी हमें ये तनहाई कैसी ये अंजान जुदाई ... बंद लब्ज़, ओठ सिले थे शायद बहुत दिनों बाद मिले थे कहा ले आयी हमें ये तनहाई कै...
कुछ भी न बचा कहने को दर्द ही मिला हमें सहने को उनसे न कर सके ये जिक्र हमे भी है उनकी कितनी फ़िक्... कुछ भी न बचा कहने को दर्द ही मिला हमें सहने को उनसे न कर सके ये जिक्र हमे भी...