ए चांद तुझ पर पहरेदारी बहुत है
ए चांद तुझ पर पहरेदारी बहुत है
सुबह सवेरे बैठ जाते हैं हिसाब खोल कर
उनकी यादों की मुझ पर उधारी बहुत है।
सबको सबकी सारी खबर चाहिए,
अख़बार के सर पर ज़िम्मेदारी बहुत है।
वो जो जाने जिगर है, वो ही जानी दुश्मन भी है,
मुहब्बत के रिश्ते में बेऐतबारी बहुत है।
सारे ज़माने की नजर रहती है
हर लम्हा, ए चांद तुझ पर पहरेदारी बहुत है।
