दया
दया
दया भाव हों जिसके अंदर, वो महान हों सब जाने।
सदा से ऐसा होता आया, नर नारी जाने माने।।
जीवन की हर कला निराली, जाने माने जो जग में।
मंजिल उसी को मिल पाती है, सदा चलें जो सत मग में।।
पथ में रोड़े काटे लागे, बचने की हिक्मत जाने। दया भाव....1
छोटा बड़ा नहीं हो कोई, मन में भेद नहीं पाले।
हों ना जिसके, होये अवनति, अपनाएं आदत डाले।।
है महत्व जग में अति भारी, सब कोई जाने माने। दया भाव हों....,2
मान उसी का सदा हुआ है, दया से गलती मांफ करें।
पद वैभव भी काम नहीं दें, नहीं कोई संताप हरे।।
परिणाम सभी देखें प्रत्यक्ष, खुद जान मान कर पहचाने। दयाभाव हों....3.
विश्वास नहीं होये जिसको, मनन अमल करे खुद देखें।
बहुत शांति मिलती जीवन में, अफ़साना पोथिन लेखें।।
समय अमूल्य नहीं खो पाये, ढूंढें ना कोई बहाने। दया भाव हों....4.
क्रोधादि प्रतिशोध से कोई, पार कभी भी ना पाए।
इनके हो परिणाम भयानक, किसी को यहां नहीं भाये।।
खुद के पाया थक जायें जब, करें सहयोग न कोई जानें। दया भाव हों....5.
सदा से रहा महत्व रहेगा, धरा में सब कोई गुण गाये।
दया करें जो शांति धैर्य हो, मानवता भी पनप जाये।
अविनाशी बिन ज्ञान न होये, लुटा दें चाहें खजाने। दया भाव हों....6.