मानवता
मानवता
मानवता हों जिसके अंदर,वो महान हों हुए जाने।
सदा से ऐसा होता आया, नर नारी जाने माने।।
जीवन की हर कला निराली, जाने माने जो जग में।
मंजिल उसी को मिल पाती है, सदा चलें जो सत मग में।।
पथ में रोड़े काटे लागे, बचने की हिक्मत जाने।
मानवता हो,,,,,,1
छोटा बड़ा नहीं हो कोई, मनमे भेद नहीं पाले।
हों ना जिसके, होये अवनति, अपनाएं आदत डाले।।
है महत्व जगमे अति भारी,सब कोई जानें माने।
मानवता हों,,,,,2
मान उसी का सदा हुआ है मानवता के कार्य करें।,
पद वैभव भी काम नहीं दें, नहीं कोई संताप हरे।।
परिणाम सभी देखे
ं प्रत्यक्ष,खुद जान मान कर पहचाने।
मानवता हों,,,,,,3.
विश्वास नही होये जिसको,मनन अमल करे खुद देखें।
बहुत शांति मिलती जीवन में, अफ़शाना पोथिन लेखें।।
समय अमूल्य नहीं खो पाये, ढूंढें ना कोई बहाने।
मानवता हों,,,,,,,,,4.
क्रोधादि प्रतिशोध से कोई,पार कोई भी ना पाए।
इनके हो परिणाम भयानक, किसी को यहां नहीं भाये।।
खुद के पाया थक जायें जब, करें सहयोग न कोई जानें।
मानवता हों,,,,,,,,5.
सदा से रहा महत्व रहेगा, धरा में सब कोई गुण गाये।
मानवता से शांति धैर्य हो, मानवता भी पनप जाये।
अविनाशी बिन ज्ञान न होये,लुटा दें चाहें खजाने।
मानवता हों,,,,,,,,,6.