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मील का पत्थर बनी है, चीखती परछाइयां।
रुक नहीं पाती है फिरभी, दिनों की तन्हाइयां।।
जानकर ही जान का नित,खो रहा है आवरण।
हो नहीं पाता सनद ज्यों, देखलो वातावरण।।
भाव नाही भावना में , बढ़ रही है दूरियां।
मील का पत्थर,,1
देखें अब ठहरे न कोई, डरता रहता है यहां।
बीरान के सम लग रहा, चारों तरफ भय हो महां।।
आवाद कैसे होयग,नित रो रही सच्चाइयां।
मील का पत्थर,,,,,,2
कौन किसका है कहां,घट कर्म किसके हित करें।
भूल के एहसास से ना, कर्म फल टारे करें।।
त्यागे अंधविश्वास अरु थोथी बनी जो रूढ़ियां।
मील का पत्थर,,,,,,3 
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काल के बीजों को बोकर कल न पाओगे यहां।
रात दिन कलकल करें, किसके लिए वो है कहां।।
मानवता खो करके यहां, पर कुछ बने घट काइयां।
मील का पत्थर बनी है, चीखती परछाइयां। ,4
बेबसी बरदानो की,निज कर्म भूलें धर्म को।
जान ना पाए यहां पर, काल केउस मर्म को।।
काल के सम होयगी, बढ़ती रहें जब दूरियां।
मील का पत्थर,,,,,5
माहौल गर ऐसा रहा, बिध्वंस होये देश में।
रोक पाएं ना कोई,जब भेद द्वैष हों रेश में।।
अविनाशी चेते काल पे,होये नहीं मजबूरियां।