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D Avinasi

Abstract

4.0  

D Avinasi

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पर्यावरण

पर्यावरण

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मुक्तक   

स्वच्छ रहे परिवेश और तन, कई रोग खुद दूर रहें। 

पर्यावरण संतुलन के हित, ना कीचड़ ना घूर रहें।।   

नर नारी ऐसे प्राणी है, विविध प्रदूषण करें यहां।

जिससे बढ़ें अजूबे रोग, सभी लोग मजबूर रहे।। स्वच्छ....1  

            

कविता

किसी तरह का होय प्रदूषण, उपजे सभी से बीमारी।             

रुके न अंधविश्वासों से वे हो जाये दबा से भी भारी।।           

धुआं से बिगाड़ फेफड़े जाये, शनै शनै छीड़ तन होये।             

चार दिनों की चांदनी हो, रात दिन घुट-घुट के रोये।।              

किसी तरह कल्याण न होये, कितनी युक्ति हो हितकारी। किसी....1           


पानी के दूषित होने से, होय उद्र की भारी ब्याधे।               

पाचन तंत्र भी होय प्रभावित, शक्ति रहे ना तन साधे।।          

सारी तमन्नाएं हो खाली, तपन पतन की हो बारी। किसी तरह....2    <

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तेज ध्वनि से कई हानियां, प्रमुख बधिर हो कर ललसायें।          

चाहे खाली करने से ना, काम कभी भी बन पाये।।  

उत्तर सही न दें पाने से, कई देय सम्मुख ही गारी। किसी तरह.....3


परिवेश अगर दूषित रहता, पादप भी वहां नहीं पनपे।               

संतुलन प्रकृति का बिगाड़ जाय ,असर हो जीवो के तनपे।।       

कोई धान्य न होये पौष्टिक, खाने में ना हों गुणकारी। किसी तरह....4       


स्वच्छ जब वातावरण हो, सभ्हल तब परिवेश जाये।               

 केवल कहने से न बने कुछ, वैसे क्या हो पछताये।।            

सीख लेंय जब सीख जो देवे, तब हो युक्ति असरकारी। किसी तरह....5        


रोक सभी अब देय प्रदूषण, असमय कहर से डर जाये ।          

चैन की स्वासे मिल जायेगी, खुद का जीवन संवर जाए।।          

अविनाशी जीवे जीने दें, कोई हीन हो बलकारी। किसी तरह....6        



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