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Shakuntla Agarwal

Abstract Classics

4.8  

Shakuntla Agarwal

Abstract Classics

"दुनिया एक मुसाफ़िरखाना"

"दुनिया एक मुसाफ़िरखाना"

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एक दिन सबको जाना है,

दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है,

चंद रोज़ हैं बहारें,

फिर चमन वीराना है,


खाली हाथ आया था बंदे,

खाली हाथ ही जाना है,

मोह - जाल में फँसकर बंदे,

आखिर तू क्यूँ भूल गया,

दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है,


बंदर डुगडुगी पर नाचें,

हम भी कठपुतली जैसे नाच रहें,

दुनिया एक रंगमंच है यारों,

पल में पर्दा गिर जाना हैं,


आखिर तू क्यूँ भूल रहा,

दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है,

कोड़ी -कोड़ी जोड़ तूने,

ये शीशमहल बनवाया,

इसमें बैठकर बंदे,

तू क्यूँ इतना इतराया,


अंत समय जब आयेगा,

खाली हाथ ही जाना हैं,

फिर क्यूँ तू ये भूल रहा,

दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है,

तात, मात, भ्रात, कुटुम्ब कबीला,

स्वार्थों के झूठे फंदे हैं,


जिसका जितना हिस्सा,

उतने सुख - दुःख बाँटे हैं,

झूठे बँधनों में फँसकर बंदे,

तू इतना क्यूँ फूल रहा,

सभी यहीं के साथी हैं,


सब कुछ यहीं रह जाना हैं,

ये दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है,

वासना तन की भूख,

चिंता चिता समान हैं,

इनमें सुख, ना चैन, ना आराम हैं,

जर्जर काया जब तेरी होगी,


"शकुन" कुछ काम नहीं आयेगा,

फिर तू क्यूँ ये भूल रहा बंदे,

ये दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है।


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