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Juhi Grover

Abstract

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Juhi Grover

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मेरा अपना

मेरा अपना

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शहर बदला, लोग बदले, कोई तो घर आता,

खिड़की से आते जाते देख,यही उम्मीद होती,

..............आखिर कोई तो मेरा अपना होता।


नया शहर,नई जगह,कोई तो मेरे तक पहुँचता,

कहीं कोई दिख जाए मेरे शहर का,खुशी होती,

...............आखिर कोई तो मेरा अपना होता।


इस पराये शहर में कोई तो जान पहचान होती,

अकेले सारा दिन अजनबियों में कैसे बिताती,

...............आखिर कोई तो मेरा अपना होता।


नहीं समझती थी कि अपना बनाना पड़ता है,

नई जगह जाकर परायों को अपनाना पड़ता है,

..................तब पराये भी अपने बन जाते हैं।



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