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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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क्या हुआ

क्या हुआ

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क्या हुआ मन का अंधेरा है

उसकी आवाज का

सुरीला सम्मोहन है

आजादी सी गुलामी है

अर्थहीन शब्दों का मेला है

भावों की पथरीली जमीन है

तुम हो तो

एक नयी दुनिया है

तुम्हारी तरह रौशन

दुनिया उन तमाम नजारों से

भरी भरी हैं

जो है,तो नहीं

लेकिन होनी चाहिये

इतना सा रिश्ता है

हमारा भविष्य से

हम वहाँ हैं

जहाँ होने की चर्चा कर रहे हो तुम

आओ न सीधे रास्ते से

आंखे बंद किये हुए

या ठहरो वहीं

मैं ही आ जाता हूँ

एक बार फिर तुम्हारे पास।


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