आजकल
आजकल
गीता में कृष्ण का वायदा कि
जब जब धर्म की हानि होती है
मैं नये रूप में आता हूँ ।
रामायण में बाबा तुलसी की
राम और जगत के बीच का
अच्क्षुण नाता कि
सियाराम मय सब जग जानी।
अयोध्या राम की मूर्ति मे
प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन
और राम के आने के
उद्घोष के बीच
अगर कोइ तारतम्य है
तो अच्छा है।
कोइ सांस्कृतिक प्रवाह है
तो अच्छा है।
जीवन पर कोइ सकारात्मक प्रभाव है
तो अच्छा है।
पर सबसे अच्छा तो राम में विश्वास है
और अगर है तो
हमारे वैचारिक नजरिये में बदलाव की
जरुरत है
अब हमें राम के सामने रावण को
लाना भर है
और उसके विनाश के लिये
आश्वस्त हो जाना भर है।
हमारी विश्वास पर आधारित
अनुभूति तो ये है कि
समय समय पर हमें अत्याचार से
मुक्त करने के लिये
महापुरूषों लाने वाली शक्ति
जिसकी उपासना भगवान राम ने
युद्ध के मैदान में की थी
खुद सक्रिय है
और बहुत कुछ बदल रही है
हमारे जीवन मे।
हम भोले भाले ईश्वर में विश्वास रखने वाले
भारतीयों के हित में एक बार फिर
कुछ अस्तित्व में सक्रिय है।