पहले और अब
पहले और अब
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पहले तुम मुझे अच्छे लगते थे
आजकल और अच्छे लगने लगे हो।
ये सिलसिला
दीवानगी में तबदील हो चला है
और इसकी वजह स्पष्ट होती जा रही है
तुम्हारे व्यक्तित्व का आयाम
रौशन होता जा रहा है।
सुख दुख
जय पराजय से परे हो तुम ।
सुख हो या दुख
जीत हो या हार
तुम्हारे जीने का आयाम
अपरिवर्तित रहता है।
यूं ही तुम विस्तृत होते जा रहे हो
या तुम्हारे विस्तार का
आयाम दृष्टिगोचर होता जा रहा है।
शायद तुम
तो विपरीत भावों के बीच
संतुलन का पुल हो
तब भी जब भाव उग्र हो जाया करते हैं।