अभूतपूर्व
अभूतपूर्व
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अभूतपूर्व संकट और
उससे मुक्ति के लिये
परम्परागत पगडंडियों पर
चलते हुये हम।
अनुभव कर रहे हैं कि
हैं अभी तक वहीं
जहां से चले थे।
जीत की खुशी
और पराजय से उदास होते हुये
हम मशगूल हैं
अभूतपूर्व संकट से मुक्त होने में।
हमारे प्रयास का प्रतिफल ही तो है
जीवन के पेड़ से
मनुष्यता की चिड़िया फुर्र
और मजे की बात ये है
कि हम डरने लगे हैं
मनुष्यता से।
हिस्सा बनते जा रहे हैं
अपने अभूतपूर्व संकट का।