Surendra kumar singh

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Surendra kumar singh

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विचारों का अंधकार

विचारों का अंधकार

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निबिड़ अंधकार भी,

विचारों का जगमग अंधकार भी

खामोश सन्नाटा भी

सब स्थिर से चलायमान थे।

परिवर्तन का शोर था

वो भी ठीक सक्रिय अंधकार की तरह।

ऐसे में आदमी के दिमाग में

जाने क्या कौंधा

उसने कुछ कहा 

जैसे कि मै मनुष्य हूं

और अंधेरा अवाक सा

अपने को रौशनी में तब्दील होते

देखता रह गया।

विचारों का जगमग अंधकार भी

मनुष्य होने के विचार मात्र से

रौशन हो उठा ।

अब आलम कुछ और है

लगता है परिवर्तन का शोर

हकीकत मे बदल गया है

क्योंकि कि जो था

वो नहीं रहा

होगा भी तो उसमें गति नहीं है।


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