दर्शन।
दर्शन।
खड़ा हूँ तेरे दर्शन को, उम्मीद की एक नई किरण लिए।
एक बार तो दर्शन दे दो "गुरूवर", पड़ा हूँ दर पर आस लिए।।
संजोए बैठा कितने सपने लेकर, लगते कभी भी पूरे ना होंगे।
देख जगत के नित नए तमाशा, नहीं लगता तुम मेरे होगे।।
माना है मैंने सब कुछ तुमको, इस कराज तुमसे कह रहा हूँ।
चल ना सकूँगा तुम बिन अब मैं, घुट-घुट ऐसे जीये जा रहा हूँ।।
निराशा भरे इस जीवन में, तुमसे ही आशा की किरण जगी।
तुम तो जगत के हो पिता, चरणामृत पीने की प्यास लगी।।
कल्याण तो करना काम तुम्हारा, कितनों को तुमने तारा है।
" नीरज" तों मात्र "दर्शन" का प्यासा, तुमसे ही नाता जोड़ा है।।