दर्पन झूठा कहलायेगा
दर्पन झूठा कहलायेगा
भीगी पलकों से मत देखो
दर्पन झूठा कहलायेगा।
अपना अन्तर्मन तुम झाँको
कमी नजर आ जायेगी
तुम यदि इसको दूर करो तो
मस्ती सी छा जायेगी
वर्षों से जो जमा है दिल मे
पलक झपकते बह जायेगा।
अनजाने की गल्ती अक्सर
कहाँ दिखाई पड़ती है
अपनी कमी छिपाकर दुनिया
सबसे खूब अकड़ती है
अहंकार ये शीशमहल सा
पल मे इक दिन ढह जायेगा।
करो तमन्ना फूलों की तो
शूलों की सौगात मिले
तपिश चाहिए साँसों की तो
उमस भरी फिर रात मिले
किन्तु रहो ईमान सहेजे
यही जगत मे रह जायेगा।