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Suresh Sachan Patel

Crime Inspirational

4  

Suresh Sachan Patel

Crime Inspirational

।।दरख़्त का दर्द।।

।।दरख़्त का दर्द।।

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बीज के गर्भ से निकला पौधा,

देख कर दुनिया हरसाया।

मिल कर के ठंडी समीर से,

रवि किरणों संग मुसकाया।


लेकर धरा से अपना पोषण,

दिन प्रति दिन लगा वह बढ़ने।

कभी आॅ॑धियों का किया सामना,

कभी धूप के सहे थपेड़े।


कभी किसी ने पैरों से कुचला,

कभी किसी का आहार बना।

बड़ा हुआ जब मैं थोड़ा,

किसी की छाया का आधार बना।


बैठ कर चिड़ियाॅ॑ मेरे आॅ॑चल में,

सुन्दर गीत सुनाती थी।

मंद पवन के झोको के संग,

डाली डाली इतराती थी।


एक दिन मानव की क्रूर नजर,

अान टिकी मेरे ऊपर।

लेकर के वह क्रूर कुल्हाड़ी,

लगा चलाने मेरे ऊपर।


करुण रुदन किया चिड़ियों ने,

पशुओं ने अश्रु बहाए थे।

पर मानव को दया न अाई,

सारे दरख़्त काट गिराए थे।


सारी खुशियाॅ॑ धूल हो गईं,

सपने चकनाचूर हुए।

मानव के लालच की खातिर,

हम जीवन से मरहूम हुए।


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