दर दर भटके
दर दर भटके
सुकून की तलाश में हम करते रहे सफ़ऱ
गम-गुसार के भेष में मिला एक रहगुज़र
लूट लिया यक़ीन मंजिल के ख़्वाब में
करके बेआबरू ना जाने गया किधर
अब सुबह-ओ-शाम ढूँढते है हम उसे
मिल जाए उसके निशाँ बस एक बार मुझे
मांग लूँ मैं जवाब उन सभी सवालों का
जो उसकी याद में नीम-शब दर दर भटके