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Lokeshwari Kashyap

Tragedy Others

4  

Lokeshwari Kashyap

Tragedy Others

दो जून की रोटी

दो जून की रोटी

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249


भूखे पेट की सिसकियाँ आँखों से बरसती हैं l

यहाँ दो जून की रोटी को जिंदगी तरसती है l

जेठ की दुपहरी में नंगे पाँव गरीबी चलती है l

फिर भी दो बूंद जिंदगी की बेमोल मिलती है l


महंगाई की मार गरीब की कमर तोड़ती है l

घुटती जिंदगी जीने की आस भी छोड़ती है l

होंठों तक आकर भी मुस्कान लुटती है l

बंद बोतलों में साहब यहाँ पानी बिकती है l


बंजर प्यासी धरती हरियाली को तरसती हैl

ठूँठ की चिड़िया जल बिन मछली सी तड़पती है l

प्रदूषण की दावाग्नि जिंदगियां निगलती है l

अनु अब तो हवा भी बंद डिब्बों में बिकती है l


छोटी छोटी कोठरियों में जिंदगी सिमटती है l

अपनों के प्यार के लिए बूढ़ी आँखें तरसती है l

जेठ की दुपहरी में दो निवाले जुटाने जिस्में तपती है l

गरीबी से उबरने में तमाम उम्र कटती है l


उस दुकान का पता दे जहाँ खुशियाँ बिकती है l

वो फनकार कहाँ है जो फटे अरमान सिलती है l

छूटती, घुटती जिन्दगियाँ हर पल सिसकती है l

झुलसता बचपन को मासूमियत को तरसती है l



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