STORYMIRROR

ARVIND KUMAR SINGH

Tragedy

4  

ARVIND KUMAR SINGH

Tragedy

दिल मेरा तोड़ गया

दिल मेरा तोड़ गया

1 min
472

मान के जिसको अपना

हरदम साथ निभाया था

जिस्म की बना के जान

जिसे दिल में बसाया था

देकर धोखा मुझको, वो

ही दिल मेरा तोड़ गया


ऐसा दगाबाज निकला

मुझे मरने को छोड़ गया


दिल बहलाने को, जब 

भी मयखाने जाता हूँ

उस बेवफा को फिर भी

मैं भुला नहीं पाता हूँ

मौत से चाहूँ मिलना

अब जीवन से मोह गया


ऐसा दगाबाज निकला

मुझे मरने को छोड़ गया


मैं पीना चाहूँ जब भी

वो गिलास में उतरे अब

घोलूँ अपने गम को

अपनी शराब में जब

नशीला होकर गम भी

नस नस में दौड़ गया


ऐसा दगाबाज निकला

मुझे मरने को छोड़ गया


जिगर का हर एक टुकड़ा

उसने इतना तड़पाया है

बोतल में छुप के बैठा 

उसे भी बेनशा बनाया है

यादों को करके नशीली

बेदर्दी और भी छोड़ गया


ऐसा दगाबाज निकला

मुझे मरने को छोड़ गया


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy