दिल की गुस्ताखी !
दिल की गुस्ताखी !
गुस्ताखी तो देखो दिल की मेरे चाहता है,
रहना साथ उसके ही सदा।
जो मुझे सिर्फ अंधेरो में मिलना चाहती है !
वो चाहता है मुस्कान बनकर उसके ही
होंठो पर रहना सदा।
जो हंसती है अपना दरवाज़ा बंद कर के सदा
वो चाहता है रहना बनकर सुरीला संगीत,
उसके ही कानो में सदा।
जो प्रायः संगीत को आँखों से सुनती है
वो चाहता है बनकर यौवन की मदहोश,
खुशबू उसके ही नथुनों में
जो अक्सर मेरे तन की खुशबू मिटाकर
ही मिलती है सबसे सदा !
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वो चाहता है बनकर रहना उसके कंठ में,
कोयल की सुरीली आवाज़ बनकर
जो अक्सर गुमसुम रहना पसंद करती है !
वो चाहता है रहना उसके हृदय में अप्रितम।
चाहत बनकर जो चंद जिम्मेदारियों के अलावा
कुछ और रखना ही नहीं चाहती अपने दिल में !
वो चाहता है बनकर सिन्दूर रहना उसी एक,
अपनी प्रियतमा की मांग का।
जो अक्सर बिना सिन्दूर रहना पसंद करती है !
गुस्ताखी तो देखो दिल की मेरे चाहता है,
रहना साथ उसके ही सदा
जो मुझे सिर्फ अंधेरों में मिलना चाहती है !