दीवानी हुई
दीवानी हुई
नज़रें हर मोड़ तक जाकर प्यासी लौटती कहती है,
हद ए निगाह तक यहाँ तन्हाई का गुब्बार है,
ज़िस्त के भीतर साँसे कहाँ जो तू नहीं मेरे हमनवाज़ कहीं।
सपने का लख़्त पड़ा है सिरहाने देखा था जो इन आँखों ने कभी तुम्हारी आँखों में,
नम नैंन से भी मुस्कुरा देते है लब याद आते ही तुम्हारे वादों के अफ़साने।
सोच की क्षितिज पर खड़े उदासीयों की आँधियों से उलझ रहा है दिल,
ढूँढते तुम्हारे कदमों की आहट अहसास मेरे मृगजल के पीछे है दीवाने।
दिल ए नादान करता है सौ सवाल कोई कैसे बदल सकता है,
कोई कैसे मुकर सकता है,
क्यूँ सीखा नहीं ये हुनर हमने रहकर तुम्हारे संग संग ए परवाने।
ना आओ इतना याद यादों के ढ़ेर से स्याही रातों को सजाओ ना,
इस पलकों पर ठहरी बूँद की कहानियों के किरदार,
तुम सुनकर मेरी सदा एक बार तो मूड़ कर देखो ना।