दहेज ,एक अभिशाप,मिटाय मिल आज
दहेज ,एक अभिशाप,मिटाय मिल आज
दहेज दानव को उपजाया,
कुछ सबने मिलकर भी,
निज संतान को बनाया,
पराया भी कुछ हमने भी,
आज ये विकराल रूप,
दहेज दानव का दिखता हैं,
दावानल यह बन,
निगलने सब कुछ बढ़ता है,
कितनी बेटियां, कितने परिवार,
भेंट इसकी चढ़ते गए,
और मूक दर्शक बन सब,
बस देखते ही गए,
जब आई लेने की बारी,
दहेज दोस्त बन गया,
जब कन्यादान खयाल आया,
विकराल रूप दिख गया,
आज चले मिल जुल इस
दानव को हराये हम,
बेटियों को पढ़ा लिखा कर
सशक्त आज बनाये हम,
है इतनी सशक्त वो,
सम्हाल सब कुछ सकती है,
हर दानव जो मिटा सकें,
केवल नारी ही वो हस्ती हैं,
ले संकल्प आज फिर
बंधन सारे खोलेंगे,
दहेज को हम सब
मिल अपने विचारों में मारेंगे,
प्रथम भगाए इस दानव को,
अपने जीवन से आज हम,
बना पाएंगे हम सब मिल,
दहेज मुक्त समाज तब।।
