डरावना
डरावना
जिंदगी वैसे तो ,
किसी न किसी तरीक़े से,
हर रोज डराती है।
कभी -कभी
जिंदगी का सबसे डरावना
चेहरा हमें दिखाती हैं।
हमारी सोच भी,
वहां तक नहीं सोच पाती हैं।
जिंदगी की दुआओं को,
बददुआएँ निगल जाती हैं।
कभी -कभी
जिंदगी का सबसे डरावना
चेहरा हमें दिखाती हैं।
जिंदगी मौत की राह
कैसे चल दी।
उन लम्हों को रोक नहीं पाती हैं।
उम्मीदों के इंतजार के बाद
जिंदगी मौत पर ठिठक जाती हैं।
कभी -कभी
जिंदगी का सबसे डरावना
चेहरा हमें दिखाती हैं।
वो जो दो पल के लिए भी,
आंखों से औझल नहीं करती था।
मुंह फेर कर सामने से गुजर जाती हैं।
किस का भरोसा करें।
रब की सूरत भी फरेबी नज़र आती हैं।
कभी -कभी
जिंदगी का सबसे डरावना
चेहरा हमें दिखाती हैं।
अब जिंदगी
किसी बात से
डरतीं ही नहीं।
उस दिन से डरावना
क्या हो सकता है।
साल बदले है।
पर तारीख से नज़र हटती ही नहीं।

