अनकहे भाव
अनकहे भाव
कलाइयों की टूटी चूड़ियां
आंखों को घेरे काली लकीरों के घेरे,
बदन पे पड़ी कई बर्बरता की निशानियां,
रात के अंधेरे को चीरती वो सिसकियां,
क्या बयां नहीं करती अनकहे भावों की कहानियां ?
उसने भी सिल लिएअपने इन अत्याचारों को,
दर्द के उबाल से, पिघलता दिल आंखों से निकल जाता,
क्या फिर भी उसका दर्द किसी को नज़र
नहीं आता ?
सिसकियां उसकी किस्मत कहलाती,
बर्बरता की निशानियां जिंदगी बन जाती ,
दर्द को अपने छिपाकर,
जिंदगी अगर जी जाती,
तो वह संस्कारी कहलाती,
जुबां अगर खोले तो, ना जाने फिर
किन -किन नामों से पुकारी जाती,
मर्यादा के नाम पर कई बार उसके
अरमानों की बलि चढ़ाई जाती,
हार कर अब नियति मान बैठी है इसको
अनकहे भावों की दास्तां वही पुरानी है।