अतीत
अतीत
काली रात का साया, जब धीरे धीरे गहराया
धीमे होते शोर की बहती हवा से पेड़ लहराया।
कुछ अजीब सी आहट से जब यू मन घबराया
अकेलापन डराने लगा, अपनों का साथ याद आया
उफ्फ ये सन्नाटा, ये डराती रोशनी तारों की
धड़कने बढ़ने लगीं जब धुंधला दिखने लगा साया
वो कौन है वहां, किसके कदमों की है आवाज़
कोई परछाई सी है.. ओहो..ये कैसा है ये राज़
वो क्यूँ छुपा सा है.. क्यूँ मुझे डरा रहा
अपना है... तो क्यूँ मुझे यूं सता रहा
बस अब नहीं रहा जा रहा..
साहस भरा मन में और चल पड़ी उसकी ओर
वो खड़ा था बाहर सड़क के उस पार
काले कपड़े उसके, तीखे नैन कटार
खुद को संभाले हुए, भरी गहरी लंबी सांस
एक पल में ही मैंने, पाया उसको अपने पास
कौन था वो ?? कौन... सोचो कौन ??
वो कोई और नहीं.. वो था मेरा "अतीत "
ये सब उसकी चाल थी... क्यूंकि---
मेरे अंदर का डर.. द्वंद्व, घबराहट
इन सभी से मुझे बहार निकालना चाहता था
मेरे साहस का परीक्षण लेकर,
मुझे दृढ़ बनाना चाहता था !