डरावना ख़्वाब
डरावना ख़्वाब
भूले से भी अगर नींदो में कभी भी,
डरावना कोई ख्वाब गर आ जाए जो,
बोझिल सी रहतीं हैं हरदम ये निगाहें,
और जीवन हो जाता है नीरस फिर तो।
हर वक्त एक डर सा लगने लगता है,
कि कहीं वो ख्वाब सच हो जाए जो,
चौंक पड़ती है हर वक्त ये नज़र ही,
ज़रा सी भी आहट कानों में आए जो।
दिल रहता है हरदम ही मायूस सा,
सहमा सहमा सा रहता है हर एक पल फिर तो,
परेशान सी हो जाती है ये जिंदगी,
भाता नहीं हैं कुछ भी मन को फिर तो।
ख्वाब तो ख्वाब होता है फिर भी,
ऐसा कोई ख्वाब अगर कभी आए तो,
मुश्किल हो जाता है ये जीवन जीना,
और मुश्किल हो जाता है ख्वाब भुलाना वो।

