डर
डर
सहज सी चीजों को असहज बना देता है,
आसान सी राहों को मुश्किल बना देता है,
बेवजह भी घबराहट बढ़ा देता है.
मंजिलें दूर चली जाती हैं इसके रहते,
ख़ूबसूरत चीज़ों को भी डरावना बना देता है.
बिखरे हुए फूलों का अहसास होने ही नहीं देता,
क्योंकि बस काँटों पर ही होती है इसकी नजर.
ये डर… जो भीतर कहीं छुप कर रहता है मन में।