ये डर… जो भीतर कहीं छुप कर रहता है मन में। ये डर… जो भीतर कहीं छुप कर रहता है मन में।
मैं शून्य में से आया हूँ, मैं शून्य में जाना चाहता हूँ !!! मैं शून्य में से आया हूँ, मैं शून्य में जाना चाहता हूँ !!!
फिर कभी उस ऐतिहासिक दुर्ग को उसके गौरव में नहीं देख पाई। फिर कभी उस ऐतिहासिक दुर्ग को उसके गौरव में नहीं देख पाई।
लेकिन ऐसा उसने क्यों किया रोशनी को क्यों जला दिया लेकिन ऐसा उसने क्यों किया रोशनी को क्यों जला दिया
सहज ही मिल जाती हैं जब खुशियाँ, उनकी कद्र ही गंवा देते हैं कुछ लोग! सहज ही मिल जाती हैं जब खुशियाँ, उनकी कद्र ही गंवा देते हैं कुछ लोग!
जब बांकपन को अपने किरदार में समाए रखना है, कदम से कदम मिलाकर ज़माने के साथ चलना कैसा जब बांकपन को अपने किरदार में समाए रखना है, कदम से कदम मिलाकर ज़माने के साथ चल...