विषाद
विषाद
विषाद, वेदना, संताप, शोक के मंज़र से डर कैसा,
जीना, ज़िन्दगानी, प्राण, जीवन से मुंह मोड़ना कैसा..
जब बांकपन को अपने किरदार में समाए रखना है,
कदम से कदम मिलाकर ज़माने के साथ चलना कैसा...
जब दुःख के दुःख का आसरा केआस, खुद ही रहते हैं,
सुख के सुखन की चर्चित कहानी के, मसीहा बनना कैसा...
उजड़ी बस्तियों की झाँकी देख, शहर बसाना सीखा है,
डुबती नैया देखकर, गोते लगाने के गुण जानना कैसा...
तौर, तेवर, फ़ितरत का बदलना शाश्वत सत्य रहा है,
असहज अनजाने बदलाव की पहचान को पाना कैसा...
