दुर्ग
दुर्ग
वो दुर्ग जग प्रसिद्ध था,
राजाओं के पराक्रम और शूरवीरता का,
अकूत समृद्धि, वैभव, स्थापत्य कला का
अप्रतिम उदाहरण वह दुर्ग,गौरवशाली था।
वहां बेटे संग भ्रमण करते करते
पग थक गए थे मगर गाइड
वर्णन करते थक नही रहा था
सो मन प्रबल उत्साहित था।
इतिहास की अद्भुत स्मृतियों
को प्रदर्शित करता
वो भव्य दुर्ग मोहता था,
अचंभित करता था,
शूरता के अवशेष,कौतुक रखते थे
मलिन भट्टियां अस्त्रों की
बेटे की आंखों में चमकती थीं।
रानियों के कक्ष
की ओर बढ़ते मेरा
हृदय प्रफुल्लित था
कल्पनाएं नृत्य करने लगी थीं
कि कैसा होगा रानिवास।
विशाल मुख्य द्वार से
अब छोटे से प्रवेश द्वार पर
सर झुका कर
मन को संभाल कर,
कल्पनाओं को टटोलते
ज्यों ही उसकी देहरी पार कर पहुंची
तेज डग भरते कदम स्वतः
धीमे होने लगे।
रानिवास के
कमरों में प्रवेश करते ही,
दीवारों को छूते हुए
मन पर अनगिनत
भय के प्रतिबिंब उभरने लगे।
श्रृंगार में लिपटा
देह का त्रास,
ईर्ष्या की झांस में
षड्यंत्रों की थाप
माँ के हृदय का
अंतहीन संताप
ओह ! वह सब
असहनीय था,
मैं लौट आयी।
बाद उसके
एक छोटे से घर में,
एक माँ अपने बेटे को
हृदय से लगाये
फिर कभी उस
ऐतिहासिक दुर्ग को
उसके गौरव में नहीं देख पाई।
