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Mani Aggarwal

Abstract

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Mani Aggarwal

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सर्वत्र हो, तो प्यार हो

सर्वत्र हो, तो प्यार हो

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आनंद ही, आधार हो

सर्वत्र हो, तो प्यार हो


सर्वान्त हो, संदेह का

प्रारूप ये, है नेह का

सुंदर सपन, साकार हो

सर्वत्र हो, तो प्यार हो


है प्रार्थना, उर में यही

करबद्ध कर जपती रही

शुभ रूप मय, आकार हो

सर्वत्र हो तो प्यार हो


माना जरा, मुश्किल सही

कोशिश मगर, छूटे नही

आशा प्रबल, अम्बार हो

सर्वत्र हो तो प्यार हो।


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