ऐसी भी क्या मजबूरी है?
ऐसी भी क्या मजबूरी है?


बढ़ रहे असुर फिर पृथ्वी पर,
इनसे अब मुक्ति जरूरी है।
अवतरो! जगत पालनहारे,
ऐसी भी क्या मजबूरी है ?
संरक्षक था जो उपवन का,
माली कलियों को नोंच रहा।
चहुँ ओर अधर्मी राज हुआ,
तू मौन खड़ा क्या सोच रहा ?
ये चीखें तुम्हें पुकार रहीं,
क्यों इनसे इतनी दूरी है ?
बढ़ रहे……..
नाजुक भोली, कोमल काया,
क्या उसका था अपराध कहो ?
मासूम सज़ा क्यों ये पाई ?
लुट गई यकीं की लाज प्रभो !
आग्नेय न सब धीरज खो दें
घट रही क्रोध से दूरी है।
बढ़ रहे…...
चीत्कार हृदय करता माँ का
अब मुनिया किसे पुकारेगी ?
भर अंक प्रेम से अब किस पर,
वो कजरा अपना वारेगी।
क्यों काल हुआ मोहित उस पर ?
तुमसे ये प्रश्न जरूरी है।
बढ़ रहे…….