कहाँ ढूँढें, कहाँ जाएँ?

कहाँ ढूँढें, कहाँ जाएँ?

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कहाँ ढूँढें, कहाँ जाएँ

अहो! इंसां जहाँ पाएँ।

करो कुछ तो जतन यारों

न मानवता मिटे प्यारों!!


जहाँ देखो,वहाँ छल है

दिखे उन्माद का, बल है।

अहं में आदमी अंधा

करे है लोभ का धंधा।।


सिसकती बेटियों के स्वर

बिलखती वेदना अक्सर।

वचन है भंग रक्षा का

हुआ बेरंग नक्शा, हा!


बुढापा श्राप है ढोता

स्वयं पर आप है रोता।

लगे लाठी सहारा थी

किया क्यों बेसहारा जी?


हुआ भगवान, पैसा ही

करा लो काम,कैसा ही।

सभी रिश्ते दिखावे के

मिलावट के भुलावे के।।


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